देश का वो चर्चित केस, जो अब तक नहीं सुलझा कि खुदकुशी थी या मर्डर! | thriller – News in Hindi

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Suicide के ऐसे मामले आप ज़रूर सुन चुके होंगे, जो बाद में Murder के साबित हुए. लेकिन देश एक ऐसा चर्चित केस है जो पिछले 28 सालों से किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है कि वो वाकई खुदकुशी थी या हत्या! यही नहीं, इस केस (Infamous Case) में तकरीबन हर तरह के ट्विस्ट आ चुके हैं. किसी रोमांचक थ्रिलर से कम नहीं रह गए इस केस में दुखद यह है कि एक मौत मुद्दा तो बनी, लेकिन मरने वाली बेगुनाह थी तो इंसाफ (Justice) नहीं मिला और आरोपी बेगुनाह हैं तो उनके साथ ज़्यादती हुई.

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हम बात कर रहे हैं केरल के कोट्टयम के अभया केस की. एक कैथोलिक नन अभया की लाश (Sister Abhaya Case) 27 मार्च 1992 को सेंट पायस कॉन्वेंट के कुएं से मिली थी. शुरूआती जांच के बाद इसे आत्महत्या करार देकर स्थानीय पुलिस ने मामला रफा दफा करना चाहा. लेकिन बाद में इस केस में तमाम दलीलों और सबूतों के खुलासे के साथ सीबीआई जांच में हत्या की थ्योरी सामने आई. केरल में सबसे लंबे चलने वाले मर्डर केस के खास तथ्यों से कहानी साफ होती है.

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केरल की नन अभया की मौत 19 वर्ष की उम्र में हो गई थी. फाइल फोटो.

लाश मिलने से शुरू हुआ था केस
अभया केस में विभिन्न रिपोर्टों और कार्यवाहियों के ज़रिये अब तक जो कहानी सामने आई है उसके मुताबिक 27 मार्च की सुबह अभया को लापता पाया गया. बताया गया था कि वह सुबह 4 बजे सोकर उठी थी और आखिरी सूचना यह थी कि वह हॉस्टल के किचन में गई थी. उसके बाद से उसका कोई पता नहीं था. सुबह दस बजे करीब पुलिस ने फायर फोर्स की मदद से सुबह दस बजे कुएं से अभया की लाश बरामद की और अप्राकृतिक मौत की रिपोर्ट लिखी गई.

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने कहा कि अभया की लाश में कंधे और गर्दन के पास खरोंचें और घाव मिले. यौन शोषण की आशंका को खारिज किया गया. घावों के होने के बावजूद मौत को कुएं में डूबने से होना मान लिया गया. दूसरी तरफ, अभया की मौत को लेकर ननें लामबंद हुईं और समर्थकों ने एक्शन काउंसिल बनाकर सरकार से इसे हत्या का मामला मानकर पुख्ता जांच की मांग की.

सीबीआई तक पहुंचा केस वाया क्राइम ब्रांच

केस की जांच को लेकर उठी मांगों के मद्देनज़र क्राइम ब्रांच ने कमान संभाली और पुलिस से एक कदम आगे जाकर इस केस को आत्महत्या साबित करते हुए दलील दी कि सिस्टर अभया ने मानसिक रोग के कारण यह कदम उठाया. जनवरी 1993 में क्राइम ब्रांच ने केस बंद कर दिया तो फिर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की मांगों के बाद मार्च 1993 में सीबीआई ने मोर्चा संभाला.

सीबीआई की तीन टीमों ने की जांच
केस अपने हाथ में लेने के बाद सीबीआई की पहली टीम मौत का कारण खोजने में नाकाम रही. कोर्ट के निर्देश पर दूसरी टीम बनी जिसने यह निष्कर्ष दिया कि अभया की मौत हत्या का मामला थी न कि खुदकुशी का. लेकिन इस टीम ने पर्याप्त सबूत नहीं दिए. कोर्ट ने फिर तीसरी टीम को ज़िम्मा सौंपा, जिसने आखिरकार नवंबर 2008 में यानी 16 साल बाद दो फादरों और एक सिस्टर को हत्या के मामले में गिरफ्तार किया. 2009 में इन तीनों आरोपियों के खिलाफ हत्या और सबूत मिटाने संबंधी चार्जशीट फाइल हुई.

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नन अभया केस में सीबीआई की तीन टीमों ने जांच की.

केस का आखिरी अपडेट
यह केस अभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा है लेकिन इसका आखिरी महत्वपूर्ण पड़ाव पिछले साल था. 26 अगस्त 2019 को 27 साल बाद इस केस का ट्रायल शुरू हुआ था. ट्रायल के पहले दिन ही सीबीआई की गवाह एक नन अपने बयानों से मुकर गई थी और उसने अभया के स्कार्फ और चप्पलों को देखने से इनकार किया और इस बात से भी मना किया कि उसने वारदात की सुबह कुएं में कुछ भारी गिरने की आवाज़ सुनी थी.

इसके बाद 17 सितंबर 2019 को सीबीआई ने एक रिटायर्ड प्रोफेसर थ्रे​शियामा को स्पेशल सीबीआई कोर्ट में प्रस्तुत किया जिसने गवाही दी कि पादरियों का बर्ताव पहले भी भयानक रहा और कई स्टूडेंट पहले भी शिकायतें करते रहे. लेकिन चूंकि सीबीआई ने यह गवाह अचानक प्रस्तुत किया तो सुनवाई टाल ​दी गई.

27 सालों में क्या कुछ घटा?
साल 1993 में केस सीबीआई के पास जाने से अब तक इस केस में जो कुछ अहम मोड़ या ट्विस्ट रहे, उन पर एक नज़र डालने से पता चलता है कि कैसे यह केस इतना चर्चित रहा और क्यों जांच की भेंट चढ़ा.

– क्राइम ब्रांच पर सबूत मिटाने के आरोप लगे और एक पूर्व एसपी को भी इस मामले में आरोपी बनाया गया.
– पुलिस के मुताबिक इस केस की शुरूआती जांच करने वाले एक एसआई ने सीबीआई के मानसिक टॉर्चर से तंग आकर खुदकुशी कर ली.
– इस केस में आरोपी पादरियों और एक सिस्टर के नार्को टेस्ट हुए. लेकिन टेस्ट रिपोर्ट और सीडी के साथ छेड़छाड़ किए जाने के आरोप लगे और सीबीआई कथित तौर पर ओरिजनल सीडी नहीं प्रस्तुत कर सकी.
– पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर ने कहा​ कि पुलिस ने उसे मौका ए वारदात पर जाने नहीं दिया था, वरना मौत के कारणों की जांच स्पष्ट रूप से हो सकती थी.
– कोर्ट ने आरोपियों की बेल मंज़ूर करते हुए सीबीआई जांच की दिशा भटकने की बात कही थी तो सीबीआई ने जज के पूर्वाग्रह ग्रसित होने की बात कहकर सुनवाई दूसरी अदालत में किए जाने की.
– वारदात के वक्त मौके पर मौजूद होने के पुख्ता प्रमाण न होने के चलते मार्च 2018 में आरोपी एक पादरी को स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने आरोपों से बरी कर दिया था.
– कोर्ट में सीबीआई के इस दावे के बाद भी ज़बरदस्त विवाद हुआ था कि आरोपी सिस्टर सेफी ने जुर्म छुपाने के लिए गुप्तांगों संबंधी सर्जरी यानी हाइमनोप्लास्टी करवाई थी.

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शुरूआती और पिछले कुछ अरसे में सिस्टर अभया केस बराबर मीडिया में सुर्खियों में रहा.

तो अंतिम थ्योरी क्या रही?
कत्ल के केस में सबसे अहम होता है मोटिव यानी कत्ल की वजह को साबित कर पाना. सीबीआई ने अगर हत्या की बात कहकर आरोप लगाए तो हत्या की वजह क्या थी? इस बारे में कोर्ट में सीबीआई ने जो थ्योरी दी, उसके मुताबिक सिस्टर अभया मुंह अंधेरे जागी और हॉस्टल के किचन में फ्रिज से पानी लेने गई. वहां उसने दो पादरियों और सिस्टर सेफी को ‘आपत्तिजनक हालत’ में देख लिया.

इसके बाद सिस्टर अभया पर कुल्हाड़ी जैसी चीज़ से हमला किया गया और तीनों ने मिलकर उसकी लाश कुएं में फेंक दी. सीबीआई ने यह भी कहा था कि पुलिस ने मौके की ठीक से जांच नहीं की और सबूत नहीं जुटाए या बाद में नष्ट कर दिए गए. बहरहाल, इस थ्योरी के बाद इसे साबित करना सीबीआई के लिए टेढ़ी खीर रहा. इन तमाम जांचों के बाद 28 साल बीत जाने पर भी यह केस अब तक पहेली ही बना हुआ है.

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