Raktanchal Web Series Real Story Mukhtar Ansari Brajesh Singh

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Raktanchal: आजकल  का जो दौर है वो ऐसी फिल्मो और वेब सीरीज का है जिसमे मारधाड़ हो गेंगस्टर्स हों गेंगवार हो. ऐसी ही एक वेब सीरीज है रक्तांचल (Raktanchal) जो अभो अभी एम् एक्स प्लेयर (MX Player) पर आई है. 9 एपिसोड वाली 4.5 घंटे की इस वेब सीरीज की कहानी कोरी कल्पना मात्र नहीं है, बल्कि इसकी कहानी पूर्वांचल के दो सबसे बड़े माफिया गेंग्स की आपसी गेंगवार पर आधारित है. 80 के दशक के ये दोनो बाहुवली आज उत्तर प्रदेश की राजनीति में चुने हुए राजनेता हैं जिनमे से एक  है मुख्तार अंसारी और दूसरा है ब्रजेश सिंह.     

Raktanchal Story

रक्तांचल की कहानी शुरू होती है साल १९८४ से जहाँ इस कहानी का हीरो विजय सिंह एक सीधा सादा पड़ने वाला युवक है, जिसके पिता गाँव के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं.  वो चाहते हैं कि उनका बेटा आईएएस बने. गाँव के लोगों की मदद करने के लिए नायक विजय सिंह के पिता कहानी के विलेन वसीम खान के गुंडों से उलझ पडते हैं, जहाँ बेटे की आँखों के सामने ही बाप की हत्या कर दी जाती है. अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए विजयसिंह अपराध की दुनिया में कूद पड़ता है. वसीम खान और विजय सिंह के बीच गेंगवार होती है और पूर्वांचल में रक्त की नदियाँ बहने लगती हैं यही है रक्तांचल की कहानी.

विजय सिंह का किरदार निभाया हैं क्रांति प्रकाश झा ने और वसीम खान की भूमिका में है निकितन धीर. कहानी का एक और किरदार है जो आपको याद रह जायेगा और वो है सनकी पाण्डेय जिसे परदे पर विक्रम कोचर ने निभाया है.

Raktanchal based on real gangsters of UP

अब वेव सीरीज रक्तांचल की कहानी से बाहर आते हैं और चलते हैं (real story) असली पूर्वांचल की और-

जहाँ के दो माफियाओं के बीच हुई गेंगवार से ये कहानी काफी कुछ मिलती जुलती है इलाके भी वही है और समय भी.

एक का नाम है मुख्तार अंसारी और दूसरा है ब्रजेश सिंह.

ब्रजेश बाराणसी के धरहरा गाँव में साल १९६४ में पैदा हुआ उसके पिता रविन्द्र सिंह इलाके के रसूकदार लोगो में से थे. साल १९८४ में ब्रजेश बीएससी की पढाई में व्यस्त था वो चाहता था कि पढ़ लिख कर कुछ ऐसा करे कि समाज में उसका नाम हो लेकिन उसकी जिन्दगी ने कुछ ऐसा मोड़ लिया  कि वो बदनाम हो गया.

27 अगस्त १९८४ को ब्रजेश के पिता की हत्या कर दी गयी, उनके दो विरोधियो हरिहर सिंह और पांचू सिंह ने कुछ और लोगों के साथ मिलकर इस हत्या को अंजाम दिया था ग्राम प्रधान रघुनाथ यादव पर भी आरोप था

पिता की मौत से दुखी ये 20 साल का लड़का बदले की आग में जलने लगा, ब्रजेश अपने पिता के हत्यारों से बदला लेने के लिए तड़प रहा था और पूरे नौ महीने बाद उसे उसे मौका मिल ही गया.

 27 मई १९८५ को हरिहर सिंह ब्रजेश की आँखों के सामने था पिता के हत्यारे को सामने देखकर ब्रजेश का खून खौल उठा और उसने हरिहर सिंह को मौत के घाट उतार दिया. पुलिस थाने में मामला दर्ज हुआ और ब्रजेश सिंह फरार हो गया.

लेकिन हरिहर को मारने के बाद भी ब्रजेश की बदले की आग ठंडी नहीं हुई थी वो हर उस इंसान से बदला लेना चाहता था जिसने उसके पिता की हत्या में हरिहर का साथ दिया था.

9 अप्रेल १९८६ को उसने अपनी ये चाहत पूरी कर ली. इस दिन बाराणसी का सिकरौरा गाँव गोलियों की तड़-तडाहट से गूँज उठा यहाँ गाँव के प्रधान  समेत 7 लोगों को एक साथ गोलियों से भून दिया गया था.जिनमे 4 मासूम बच्चे भी थे  इस वारदात के बाद ब्रजेश पहली बार पुलिस के हत्थे चड़ा.

सिकरौरा नरसंहार के बाद ब्रजेश को जेल भेजा गया जेल में उसकी मुलाक़ात हुई गाजीपुर मुडीयार गाँव के त्रिभुवन सिंह से.

बृजेश सिंह त्रिभुवन सिंह

त्रिभुवन सिंह और ब्रजेश की दोस्ती हो गयी. दोनों ने साथ मिलकर काम करना शुरू किया इसके बाद इन दोनों के गैंग ने कई बड़े अपराध किये, दोनों कोयले और शराब के धंधे में कूद पड़े.

रेलवे और बिजली के ठेकों पर वर्चस्व को लेकर ब्रजेश सिंह का सामना हुआ माफिया डॉन मुख्तार अंसारी से. यहीं से ब्रजेश सिंह और मुख्तार अंसारी की दुश्मनी शुरू हुई.

आगे बड़ने से पहले ये जान लें की मुख्तार अंसारी कौन है ?

उत्तरप्रदेश के गाजीपुर में पैदा हुआ मुख्तार अंसारी कांग्रेस पार्टी के शुरुआती अध्यक्ष मुख्तार अहमद अंसारी का पोता है.

कम्युनिस्ट बैकग्राउंड वाले सुभानुल्ला अंसारी का बेटा है.

भारत के पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी का रिश्ते में भतीजा है.

मोहम्मदाबाद से 5 बार विधायक और गाजीपुर से सांसद अफज़ल अंसारी का छोटा भाई है.

गाज़ीपुर के कॉलेज में पढ़ते हुए मुख्तार की दोस्ती साधू सिंह से हुई. राजनीती विरासत में मिली थी लेकिन गुंडई का कीडा काट रहा था.

छात्र राजनीति के बाद जमीन कारोबार और ठेकों को लेकर मुख्तार ने साधू सिंह के साथ अपराध की दुनिया में कदम रखा. पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जोनपुर में इनका सिक्का चलने लगा.

१९८८ में पहली बार हत्या के मामले में मुख्तार का नाम आया लेकिन पुलिस उसके खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं जुटा पाई. 

साल १९९० के आसपास ब्रजेश सिंह का मुख्तार अंसारी के गैंग से आमना सामना हुआ. ठेकेदारी और कोयले के कारोवार को लेकर दोनों गैंग के बीच कई बार गोलीबारी हुई. दोनों तरफ से जान माल का नुकसान भी हुआ, लेकिन मुख्तार राजनीतिक तौर पर काफी मजबूत था, उसके प्रभाव की वजह से ब्रजेश पर पुलिस और नेताओं का दबाव बड़ने लगा. ब्रजेश ने मुख्तार अंसारी की ताक़त को आंकने में गलती कर दी थी.

नतीजा ये हुआ कि ब्रजेश के चचेरे भाई सतीश सिंह को दिन दहाड़े मार दिया गया. चार लोग बाइक पर सवार होकर आये और चाय पी रहे सतीश को गोलियों से भूनकर चले गए.

इस वारदात से पूरा पूर्वांचल दहल गया। इलाके के लोगों में खौफ पैदा हो गया.

बदले में ब्रजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह ने पुलिस वाले बनकर गाजीपुर के एक अस्पताल में इलाज करवा रहे मुख्तार के करीबी साधू सिंह को मार डाला और पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गए

साल १९९५ में मुख्तार अंसारी ने राजनीति में कदम रखा और १९९६ में विधान सभा चुनाव जीत कर विधायक बन गया. इसके बाद मुख्तार ने ब्रजेश सिंह की जड़ें कमजोर करना शुरू कर दिया.

ब्रजेश कहाँ चुप रहने वाला था उसने  साल २००१ में मुख्तार अंसारी के काफिले पर हमला कर दिया दोनों तरफ से गोलीबारी हुई. मुख्तार के दो लोग मारे गए और ख़ुद मुख्तार अंसारी भी घायल हुआ.

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ब्रजेश को भी गोली लगी और खबर आई की ब्रजेश मारा गया…

खबर झूठी निकली ब्रजेश बापस आया और मुख्तार अंसारी से राजनीतिक मुकावला करने के लिए बीजेपी नेता कृष्णानंद राय का दामन थाम लिया और उनके चुनाव अभियान का समर्थन किया नतीजा ये हुआ कि १९८५ से गाजीपुर मोहम्मदाबाद से विधायक और मुख्तार अंसारी के भाई अफजल अंसारी को कृष्णानंद राय ने हरा दिया.

कृष्णानंद राय

इस चुनाव के बाद पूर्वांचल में कई जगह सांप्रदायिक हिंसा हुई लोगों को भडकाने के आरोप में मुख्तार अंसारी को गिरफ्तार कर लिया गया.  

साल २००५ में विधायक कृष्णानंद राय की हत्या कर दी गयी एक कार्यक्रम से लौटते समय उनकी टाटा सूमो पर अंधाधुंध फायरिंग की गयी AK 47 से तकरीबन ५०० गोलियां चलाई गयी कृष्णानंद राय समेत कुल सात लोग मारे गए.

मारे गए लोगों के शरीर से ६७ गोलिया मिली थीं.

५०० गोलिया चलाकर ये सन्देश दिया गया था कि वर्चस्व किसका रहेगा. पुरानी पारिवारिक सीट हारने का मुख्तार अंसारी को गुस्सा था. कृष्णानंद राय को मारने वाले लोग मुख्तार अंसारी के थे. जेल में रहते हुए भी इस हत्याकांड के लिए मुख्तार को नामजद किया गया.  

कृष्णानंद राय की हत्या के बाद ब्रजेश सिंह गाजीपुर इलाके से गायब हो गया वह यूपी से बाहर रहकर काम करता रहा. फ़रार बृजेश का सुराग़ बताने वाले के लिए उस समय उत्तर प्रदेश पुलिस ने 5 लाख रुपए का इनाम भी घोषित किया था. 2008 में बृजेश सिंह को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने भुवनेश्वर उड़ीसा से गिरफ्तार कर लिया. और फिर उस पर इकट्ठा हो चुके बीसियों मुक़दमों की सुनवाई देश की अलग-अलग अदालतों में शुरू हुई.

इनमें से कई अहम मामलों में अदालत ने सबूतों की कमी, गवाहों के पलट जाने और सरकारी वकील की कमज़ोर पैरवी के कारण उसे बरी कर दिया. कई मामले अभी भी लंबित हैं.

मार्च 2016 में बृजेश वाराणसी से एमएलसी बनकार राज्य की विधानसभा में दाख़िल हुआ.

इससे पहले भी इस एमएलसी सीट पर दो बार बृजेश के बड़े भाई उदयनाथ सिंह और उसके बाद बृजेश की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह का कब्ज़ा रहा है.

मुख्तार अंसारी ने १९९६ से लेकर आज तक 5 बार विधानसभा चुनाव लड़ा और जीता भी. इनमें से आख़िरी तीन चुनाव उसने देश की अलग-अलग जेलों में बंद रहते हुए लड़े. भारतीय जनता पार्टी के विधायक कृष्णानंद राय की हत्या समेत 16 गंभीर मामलों में इस पर अब भी मुक़दमे चल रहे हैं.

फिलहाल मुख़्तार अंसारी और ब्रजेश सिंह, दोनों जेल में हैं

अगर इनके बारे में आप भी कुछ जानते हैं तो कमेंट में ज़रूर बताएं.

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1 COMMENT

  1. Mukhtar Ansari ko fansi do brajesh Singh urf Vijay Singh ko chhod diya jaye kyunki narora hatyakand me mukhtar Ansari ka hath tha Vijay Singh ko majboor kiya gay apradh ki duniya sangeen jurm Karne ke liye