देश के सबसे चर्चित ‘एनकाउंटर स्पेशलिस्ट’ में शुमार रहे एसीपी राजबीर सिंह ने बेहद कम वक्त में शोहरत की बुलंदियों को हासिल किया। दिल्ली पुलिस के इतिहास में राजबीर का नाम एक ऐसी शख्सियत के तौर याद किया जाता है, जो भर्ती तो सब इंस्पेक्टर के पद पर हुए, मगर अपनी जाबांजी के दम पर महज 13 साल में प्रमोट होकर एसीपी बन गए।
एक के बाद एक एनकाउंटर में 50 से ज्यादा अपराधियों को मौत की नींद सुलाने वाले राजबीर ने एनकाउंटर के अलावा चार दर्जन से ज्यादा आतंकवादियों और 60 से अधिक कुख्यात बदमाशों को हथकड़ियां भी पहनाईं थी। दिल्ली पुलिस के ‘एनकाउंटर स्पेशलिस्ट’ राजबीर सिंह की 24 मार्च 2008 सोमवार की रात हत्या कर दी गईथी !
1982 में एक सब-इंस्पेक्टर के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत से लेकर दिल्ली पुलिस के एक हाई-प्रोफाइल असिस्टेंट कमिश्नर बनने तक राजबीर सिंह की ज़िंदगी उतनी ही सनसनीखेज और विवादास्पद थी जितना कि उनके जीवन का हिंसक अंत ! Z+ सुरक्षालेकर चलने वाले राजबीर सिंह की मौत की खबर दिल्ली पुलिस और उनके परिवार के लिए जबर्दस्त झटका थी।
24 मार्च 2008 की रात राजबीर सिंह का परिवार रोज की तरह उनके घर पहुँचने का इंतज़ार कर रहा था !इसी बीच रात करीब 11 बजे अचानक स्टाफ के कुछ लोग आए। उन्होंने राजबीर सिंह के बारे में बताया। घर में सन्नाटा छा गया। जो सुना उस पर किसी को यकीन नहीं हुआ। सभी लोग अस्पताल पहुंचे तो पता चला कि राजबीरअब इस दुनिया में नहीं है।
पहली बार वे सुर्ख़ियों में तब आये जब 1994 में उन्होंने कुख्यात अपराधी वीरेंद्र जाट को गिरफ्तार किया, इस गिरफ्तारी के बाद उनका प्रमोशन कर उन्हें इंस्पेक्टर बना दिया गया । इसके बाद उनका निशाना बने दो बड़े गैंगस्टर राजबीर रमोला और रणपाल गुर्जर । और उन्हें दिल्ली पुलिस में असिस्टेंट कमिश्नर के रूप में तैनात कर दिया गया ।
राजबीर, जिन्होंने 50 से ज्यादा अपराधियों का एनकाउंटर किया था राजधानी में आतंकवाद विरोधी अभियानों का चेहरा बन गए थे।
वेसन 2000 में लाल किले और 2001 में संसद भवन पर हुए आतंकवादी हमलों को विफल करने में सहायक थे।
1998 में कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियान में हिजबुल मुजाहिदीन के डिप्टी सुप्रीम कमांडर अली मोहम्मद डार को गोली मारी गई थी। ऐसा माना जाता है कि इसके बाद राजबीर ने तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी का विश्वास हासिल कर लिया था,
राजबीर सिंह 3 नवंबर, 2002 को फिर एक बार सुर्खियों में आये, जब उन्होंने दक्षिण दिल्ली में अंसल प्लाजा शॉपिंग मॉल के तहखाने में कथित तौर पर दो लश्कर ‘आतंकवादियों’ एजाज अहमद और अबू अनस, को मार गिराया था । जिसने राजबीर को दिल्ली पुलिस का सितारा बना दिया था। उनके सीनियर्स को पता था कि उनके तरीके संदिग्ध थे, लेकिन उस वक़्त उन्होंने अपनी आंखे मूंदना ही सही समझा ।
राजबीर सिंह पर प्रॉपर्टी विवाद के चलते पश्चिमी दिल्ली के कीर्ति नगर मेंकुछ लोगों को बंधक बनाने का आरोप भी लगा इसी के चलते दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्हें और उनके सहकर्मियों को नोटिस इशू किया था
2005 में अमर सिंह के फोन टैपिंग मामले की जांच के दौरान, उन्होंने राजनेता के साथ अच्छा तालमेल स्थापित किया ।
अपने राजनीतिक संबंधों की बदौलत, राजबीर गंभीर कानूनी पचड़ों से बचने में कामयाब रहे,
कई विवादों के बावजूद, राजबीर को स्पेशल सेल से बाहर नहीं भेजा गया।
फ़ोन पर उनकी बातचीत की एक टेप सार्वजानिक होने के बाद उन पर ड्रग माफिया के साथ उनके सम्बन्ध होने के आरोप लगे जिसके चलते उनका ट्रान्सफर अपराध शाखा से दिल्ली सशस्त्र पुलिस में कर दिया गया और संयुक्त पुलिस आयुक्त ((Vigilance)) की अध्यक्षता में उन पर एक जांच बिठाई गई
जांच में उन्हें क्लीन चिट मिली और नवम्बर २००७ में राजबीर सिंह ने आतंकवाद विरोधी सेल में special operation sqaad के प्रमुख के रूप में बापसी की !
एसीपी राजबीर सिंह, जिनकी हत्या उन्ही के एक करीबी दोस्त गुड़गांव के प्रॉपर्टी डीलर द्वारा 24 मार्च 2008 की रात को गोली मारकर कर दी गई थी !
प्रॉपर्टी डीलर विजय भारद्वाज और राजबीर सिंह के बीच दोस्ती थी। गुडग़ांव में अपने आफिस में विजय भारद्वाज ने एसीपी की हत्या कर दी थी। उसने रिवॉल्वर से राजबीर को दो बार गोली मारी थी। हत्या के बाद विजय ने पुलिस के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया ।
भारद्वाज ने अपना गुनाह मानते हुए कुछ समाचार चैनलों से कहा किउसके राजबीर के साथ “व्यावसायिक सम्बन्ध” थे और दोनों के बीच 60 लाख रूपये के भुगतान को लेकर विवाद था । एसीपी राजबीर बार-बार अपने पैसों की मांग कर रहे थे !भारद्वाज पैसे नहीं लौटा पा रहा था
इसी के चलते उसने आत्महत्या करने का फैसला भी लिया था, लेकिन उसके परिवार को सुसाइड नोट मिल गया और घरवालो ने उसे ऐसा करने से रोक दिया था
24 मार्च 2008 को राजबीर ने एसएमएस करके उसे धमकी दी थी कि “मुझे मेरे पैसे दे दो वरना अब तुम नहीं बचोगे” इस मेसेज के बाद वो काफी डर गया था और शाम को जब राजबीर पैसे लेने के लिए उसके ऑफिस में आये तो भारद्वाज ने उनकी हत्या कर दी। उस वक़्त उनके सुरक्षा कर्मी उनके साथ नहीं थे क्यों की राजबीर सिंह ने उन्हें प्रॉपर्टी डीलर के ओफिस से कुछ दूरी पर रुकने के लिए कहा था
हत्या के लिए हरियाणा पुलिस के एसीपी असोल श्योराण की रिवॉल्वर का प्रयोग किया गया था, जो कि एक एनकाउंटर के दौरान गुम हो गई थी। भारद्वाज के अनुसार यह रिवाल्वर राजबीर ने ही उसे तीन दिन पहले दी थी
राजबीर की पत्नी नर्वदा की मांग के बाद 2 जून 2008 को मामले की जांच का काम सीबीआई ने संभाल लिया था। भारद्वाज से हत्या के लिए प्रयोग किया गया हथियार भी बरामद किया गया । मामले में राजबीर सिंह का पीएसओ गवाह था, जिसने मौके से विजय को जाते हुए देखा था। इसके अलावा भारद्वाज की शर्ट से गोली चलने के बाद बारूद के निशान और उसके जूते से खून मिला था।
विवादास्पद एनकाउंटर स्पेशलिस्ट दिल्ली पुलिस के एसीपी राजबीर सिंह की हत्या के मामले में प्रॉपर्टी डीलर विजय भारद्वाज मुख्य आरोपी था। अदालत ने विजय भारद्वाज को 23 अक्टूबर 2015 को दोषी करार दिया । दोषी प्रॉपर्टी डीलर को पंचकूला स्थित विशेष सीबीआइ कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई । उस पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया ।
राजबीर पुलिस इतिहास के एकमात्र अधिकारी थे जिन्हें मात्र 13 सालों में प्रमोट करके एसीपी बनाया गया था ।
एसीपी पद के जिस छोर पर राजबीर अचानक अलविदा कह गए, उसके ठीक 9 साल बाद उसी मोड़ से उनके बेटे रोहित ने कमान संभाली है। अपने पिता राजबीर के सपने को बुलंद इरादों से साकार करते हुए रोहित आईपीएस बन चुके हैं। वे दिल्ली पुलिस में ही एसीपी बने हैं। रोहित के नाम के साथ जुड़ा है उनके पिता का नाम। यानी आईपीएस रोहित ‘राजबीर’ सिंह।
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