नहीं रहे मोहर सिंह ! अपने वक़्त में चम्बल के सबसे महंगे बाग़ी की पूरी कहानी

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400 हत्याएँ और 350 अपहरण करने वाले चंबल के पूर्व बागी मोहर सिंह  की 5 मई को 93 साल की उम्र में मृत्यु हो गई। लम्बे क़द और बड़ी मूछों वाले मोहर सिंह का एक समय चंबल के इलाके में आतंक हुआ करता था !

मोहर सिंह ने 1972 में जय प्रकाश नारायण के सामने अपने गिरोह के 140 साथियों के साथ आत्मसमर्पण किया था , 8 साल जेल में गुजारने के बाद वह मध्य प्रदेश के भिंड स्थित मेहगांव में रह रहे थे । रात में सोते समय उनकी मृत्यु हुई।

मोहर सिंह के बीहड़ से लेकर सार्वजनिक जीवन तक के सफ़र की पूरी कहानी आगे बताएँगे !

गोहद तहसील के जटपुरा गाँव में मोहर सिंह की पुश्तैनी जमीन थी इस जमीन पर गाँव के कुछ लोगों ने कब्ज़ा कर लिया ! मोहर सिंह की उम्र उस समय कुछ ३० साल के करीब रही होगी ! सरकारी अफसरों से मदद मांगी लेकिन मदद के नाम पर प्रताड़ना ही मिली  ! इसके बाद मोहर सिंह ने बंदूक उठाई और दुश्मन को गोलियों से भून डाला और बागी होकर चंबल के बीहड़ों का रास्ता पकड़ लिया !

साल 1960 में पहली बार मोहर सिंह की बंदूक की गूंज सुनाई दी । यह वह दौर था जब चंबल के बीहड़ों में सबसे खूंखार डाकू मानसिंह गैंग का बोल बाला था इसके अलावा लाखन सिंह, माधो सिंह, जैसे करीब एक दर्जन गिरोह चंबल के बीहड़ों में घूम रहे थे ।

मोहर सिंह ने सोचा कि पहले घाटी में किसी बड़े गैंग में शामिल होकर महारत हासिल कर ली जाये , मगर किसी गैंग ने नौसिखिया और छुटभैय्या होने के कारण सीधे मुंह बात तक नहीं की.

बाद में इस नौसीखीये ने 150 आदमी का अपना खुद का गैंग खड़ा कर दिया और इस गैंग ने सभी को पीछे छोड़ दिया ।

मोहर सिंह गुज्जर उर्फ दद्दा चंबल घाटी के उस वक्त के सबसे खूंखार डाकू मानसिंह राठौर के बाद दूसरे नंबर  पर काबिज हो गया !

मोहर सिंह गैंग पर 400 हत्या और 350 से ज्यादा डकैती और अपहरण के केस दर्ज थे ! मोहर सिंह के गिरोह में करीब 150 बागी थे ! इस गिरोह पर उस समय का सबसे ज्यादा 12 लाख रूपए का इनाम पुलिस ने घोषित कर दिया और अकेले मोहर सिंह पर २ लाख रूपए  का इनाम घोषित करके पुलिस ने उन्हें चंबल का सबसे महंगा बागी बना दिया था !

यूं तो चंबल घाटी में मौजूद तमाम गिरोह के सरगनाओं के कानों में भी मोहर सिंह गैंग के हथियारों की तड़तड़ाहट पहुंची, मगर मोहर सिंह गैंग का लोहा सबसे पहले माना चंबल में उस वक्त दो नंबर की कुर्सी पर काबिज बागी माधव उर्फ माधो सिंह ने. माधो सिंह –मोहर सिंह  गैंग की दोस्ती ने चंबल के बीहड़ में कहर बरपा कर पुलिस के नाक में दम कर दिया !

मोहर सिंह ने एक इंटरव्यू में कहा था कि ये तो याद नहीं की कितने कतल किए लेकिन चंबल के जंगल में रहते हुए उन्होंने और उनके गैंग ने ज्यादातर पुलिसवालों और उनके मुखबिरों पर ही गोलियां बरसाई थीं ! मोहर सिंह के मुताबिक पुलिस रिकॉर्ड में उनके गैंग के नाम  से 400 से ज्यादा हत्याएं और 350 से ज्यादा अपहरण और  डकैतियां के मामले दर्ज रहे.

बीहड़ में बैठ कर दिल्ली के किसी रईस का अपहरण अगर कोई कर ले तो इसे आप क्या कहेंगे ? चम्बल के इतिहास में ऐसा अपहरण पहले कभी नहीं हुआ था और न ही बाद में कोई कर पाया !

साल १९६५ में मोहर सिंह ने दिल्ली के एक मूर्ती तस्कर को डाकू नाथू सिंह की मदद से पहले ग्वालियर बुलाया फिर बीहड़ में बुलाकर बंधक बना लिया ! उस ज़माने में 26 लाख की फिरोती बसूली तब जाकर उसे रिहा किया !

अपहरण की इस घटना ने चम्बल से दिल्ली तक पूरे सरकारी तंत्र को हिलाकर रख दिया

इसके बाद मोहर सिंह और उसका गैंग पुलिस के पहले टारगेट पर था। मोहर सिंह ने बीहड़ में 12 साल तक अपना साम्राज्य बनाये रखा इस  दौरान 76 बार पुलिस से आमना सामना भी हुआ । लेकिन पुलिस कभी मोहर सिंह का ठीक से दीदार भी नहीं कर पाई ।


मोहर सिंह का कहना था कि उनके गैंग ने कभी भी किसी औरत के साथ बुरा बर्ताव नहीं किया। गैंग के सदस्यों को हिदायत थी कि, जो भी बागी किसी औरत से बदसलूकी करेगा उसे गोली से उड़ा दिया जाएगा.

मोहर सिंह का मानना था कि औरतो की दुआओं से ही वे जिंदा बच गए । वर्ना पुलिस कब का एनकाउंटर कर देती ।

एक वक़्त ऐसा आया जब रोज-रोज पुलिस से हुई मुठभेड़ों और 12 साल तक चंबल के बीहड़ की खून खराबे की जिंदगी से इस दस्यु सरगना का मन भर गया ! माथे पर कलंक और लोगों की बद्दुआओं के सिवाए और कुछ जिंदगी में हासिल होता नहीं दिख रहा था !

तब 1972 में मोहर सिंह के दोस्त माधौ सिंह ने उनके सामने आत्मसमर्पण का प्रस्ताव रखा !

इसके बाद मोहर सिंह ने पूरी गैंग के साथ बंदूक छोड़ने का निर्णय ले लिया औरजौरा के गांधी मैदान में अपने साथियों के साथ जयप्रकाश नारायण की गोद में हथियार डालकर ‘सरेंडर’ कर दिया.

सरेंडर के बाद मोहर सिंह के साथ सैकड़ों बागी ग्वालियर जेल ले लाए गए. 15 महीने ग्वालियर जेल. 8 महीने नरसिंहगढ़ जेल और उसके बाद मुगावली की खुली जेल में आठ साल बिताने के बाद मोहर सिंह को रिहा कर दिया गया !

रिहाई के बाद मोहर सिंह पूरी तरह से सामाजिक कार्यों में जुट गए थे । गरीब लड़कियों की शादी कराने में वे सबसे आगे रहे । मोहर सिंह भिंड जिले की मेहगांव नगर पंचायत के अध्यक्ष भी रह चुके थे।चंबल के उस वक़्त के इस सबसे महंगे बागी मोहर सिंह ने 1982 में खुद के जीवन पर बनी फिल्म ‘चंबल के डाकू’ में एक्टिंग भी की थी।

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