जानिए कैसा रहा बेंगलूरु का अंडरवर्ल्ड, जहां ‘गॉडफादर’ था मुथप्पा | thriller – News in Hindi

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बेंंगलूरु शहर (IT City) की हद से कुछ ही दूर एक आलीशान कोठी. महल से कम नहीं. लैटेस्ट हथियारों, वॉकी टॉकी से लैस दर्जनों बॉडीगार्ड (Bodyguards). कोठी के कैंपस में चलतीं इलेक्ट्रिकल गाड़ियां और पार्किंग में खड़ी दर्जनों महंगी लग्ज़री कारें. इस कोठी में आना जाना तो बहुतों का था, लेकिन अंडरवर्ल्ड (Underworld) के गॉडफादर (Godfather) से मिलना चुनिंदा लोगों के ही बस का था यानी जिससे मिलना गॉडफादर के लिए मुनाफे का सौदा हो.

बीते शुक्रवार को कैंसर के कारण आखिरी सांस लेने वाले माफिया डॉन मुथप्पा राय (Muthappa Rai) ने बेंगलूरु के अंडरवर्ल्ड पर 30 साल से भी ज़्यादा वक्त तक राज किया. अच्छे परिवार और शिक्षा के बेहतर बैकग्राउंड के बावजूद कैसे मुथप्पा माफिया डॉन बना? फिर कैसे उसने काले धंधे को सफेदपोश किया और ये जानना भी दिलचस्प है कि बेंगलूरु के अंडरवर्ल्ड का फैलाव कैसा था, जो मुथप्पा में सिमट गया.

सही मायनों में पहला डॉन था जयराज
कोडिगेहाली मुनी गौड़ा. 1970 के दशक में मुनी गौड़ा पहला गैंगस्टर था, जिसने बेंगलूरु के शराब ठेकों और कारोबारियों से हफ्ता वसूली शुरू करने के बाद शहर का पहला शुरूआती व देसी अंडरवर्ल्ड खड़ा किया. लेकिन, इसके पीछे न तो राजनीतिक ताकत थी और न ही दूसरे शहर या राज्यों के अंडरवर्ल्ड से कोई लेना देना. लेकिन मुनी की ढलान के वक्त तक शहर के अंडरवर्ल्ड में जयराज और कोतवाल दाखिल हो चुके थे.

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बेंगलूरु अंडरवर्ल्ड डॉन रहे एमपी जयराज और रामचंद्र कोतवाल.

मुनी बहुत हद तक एक गैंगस्टर कहा जा सकता था, लेकिन बेंगलूरु का पहला अंडरवर्ल्ड डॉन अगर किसी को कहा जा सकता है, तो वह था एमपी जयराज. 1970 के दशक में वह इस काले धंधे में आ चुका था और मुनी के बाद डॉन कहलाने लगा था. जयराज के पीछे राजनीतिक संपर्क और ताकत रही. उसने अंडरवर्ल्ड की ताकत और पहुंच का एहसास करवाया था. लेकिन कोर्ट में एक शूटआउट के चलते उसे दस साल तक के लिए जेल जाना पड़ा और मौके का फायदा उठाकर रामचंद्र कोतवाल ने खुद को डॉन के तौर पर बुलंद किया.

जयराज ने कोतवाल का पत्ता साफ किया
दस साल बाद जब जेल से छूटकर जयराज आया तो उसने देखा कि कोतवाल का खौफ़ और असर काफी जम चुका था. यहां तक कि वह तत्कालीन सीएम हेगड़े तक को भी धमका रहा था. ऐसे में, जयराज अपना रसूख फिर जमाना चाहता था और वह सियासत के साथ मिलकर काम करता भी रहा था. उस वक्त एक साज़िश रचकर कोतवाल का खात्मा करने में जयराज ने अग्नि श्रीधर, बच्चन और वरदराज नायक जैसे उभरते अपराधियों का इस्तेमाल किया और फिर अपना दबदबा कायम किया.

जैसे अपने दबदबे के लिए जयराज ने कोतवाल का खात्मा करवाया, वैसे ही मुथप्पा ने मुंबई के अंडरवर्ल्ड और डी कंपनी की मदद लेकर एक पूरा प्लॉट रचा और जयराज को खत्म करवाया. इसके बाद मुथप्पा ने खुद को बेंगलूरु के अंडरवर्ल्ड का डॉन घोषित भी किया और दशकों तक राज भी किया. ये मुथप्पा कौन था और अचानक कैसे अंडरवर्ल्ड डॉन बन गया था?

ग्रैजुएट और बैंकर से गैंगस्टर तक
कॉमर्स में डिग्री लेने के बाद मुथप्पा ने विजया बैंक में बतौर अफसर काम किया था. लेकिन 1980 के दशक के आखिरी सालों में मुथप्पा बेंगलूरु के अंडरवर्ल्ड के कुछ लोगों के संपर्क में आया था और उनके लिए कुछ काम कर चुका था. अंडरवर्ल्ड में टॉप पर पहुंचने के लिए मुथप्पा को एक बड़ी साज़िश रचने का मौका मिला था और वह था जयराज का कत्ल, जिसके बाद मुथप्पा ने कभी मुड़कर नहीं देखा.

जयराज को पुलिस थाने में हाज़िरी के लिए नियमित तौर पर जाना होता था. 21 नवंबर 1989 की सुबह जब अपने वकील वरदमान्या और भाई उमेश के साथ जयराज अपनी एंबेसडर कार से थाने जा रहा था, लालबाग बैक गेट पर एक फिएट ने एंबेसडर का रास्ता रोका. दो मोटरसाइकिलें जयराज की कार के दो तरफ रुकीं और अगले ही पल कुछ हमलावर एक घेरे में खड़े होकर एंबेसडर पर धड़ाधड़ गोलियां बरसा रहे थे.

मुथप्पा पूरा प्लैन बनाने के बाद खुद वहीं मौजूद था और गोलियां बरसाने में भी अव्वल था. जयराज ने गोलियों से घायल वकील के शरीर को ढाल बनाकर खुद को बचाने की कोशिश की. अपने पास हमेशा रखे कुछ बम भी हमलावरों पर फेंके लेकिन इस बार जयराज की मुलाकात यमराज से तय थी. बरसती गोलियां जयराज के शरीर में धंस चुकी थीं और कुछ देर बाद वह लाश हो चुका था. जयराज की लाश देखने के बाद हमलावर अपनी गाड़ियों से भाग गए. दिनदहाड़े, खुलेआम और पूरी साज़िश से रचे गए इस हत्याकांड के बाद मुथप्पा अंडरवर्ल्ड डॉन था.

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लैंड माफिया, गॉडफादर और बेंगलूरु अंडरवर्ल्ड का बादशाह रहा मुथप्पा राय.

उदारीकरण का दौर बना अंडरवर्ल्ड के लिए सोने की खान
1990 के दशक की शुरूआत से ही अर्थव्यवस्था का नया दौर शुरू हुआ और उदारीकरण ने विदेशी निवेश के रास्ते खोल दिए. इसी का नतीजा था कि अगले कुछ समय में बेंगलूरु अंडरवर्ल्ड का मतलब भू—माफिया हो गया. ज़मीनों का सबसे बड़ा सौदागर बना मुथप्पा. इसी दौरान मुथप्पा के संपर्क दाउद इब्राहीम के दाएं हाथ माने जाने वाले शरद शेट्टी के साथ हुए. शेट्टी दुबई से क्रिकेट फिक्सिंग और सट्टे का धंधा संभालता था. शेट्टी ने दुबई में मुथप्पा को शरण दी और खाड़ी देशों में उसके संपर्क और कारोबार में भी मदद की.

21वीं सदी की शुरूआत में ही दुबई में शेट्टी मारा गया और मुथप्पा खाड़ी देश में चला गया. कहते हैं कि मुथप्पा ने ही शेट्टी की हत्या के लिए मुखबरी की थी. फिर भारत ने कुछ मामलों में आरोपी मुथप्पा को यूएई से देश लाने में सफलता हासिल की और कुछ महीने मुथप्पा सलाखों के पीछे भी रहा, लेकिन फिर उसे सारे मामलों से निजात मिल गई. अब शुरू हुई इमेज बिल्डिंग की कहानी.

अंडरवर्ल्ड के सफेदपोश होने की कहानी
बॉम्बे बमकांड के बाद अंडरवर्ल्ड और आतंकवाद के तार जुड़ चुके थे और पूरे देश में पुलिस व प्रशासन सख्त रवैया अपना रहे थे. इस दौर में बेंगलूरु के अंडरवर्ल्ड ने चेहरा बदलने के बारे में सोचा. एक तरफ, मुथप्पा लैंड माफिया हो गया लेकिन खुले तौर पर नहीं बल्कि बिज़नेसमैन के तौर पर. जयराज ने तो इमेज के लिए कुछ वक्त के लिए ‘गरीबी हटाओ’ नाम से अखबार ही निकाला था, लेकिन मुथप्पा ने एक संस्था ‘जय कर्नाटक’ भी शुरू की जिसके ज़रिये गरीबों की भरपूर मदद भी की गई. यानी वह गॉडफादर और रॉबिनहुड बनना चाह रहा था.

दूसरी तरफ, मुथप्पा का जानी दुश्मन और उस पर हमला करवा चुका माफिया श्रीधर भी चेहरा बदल रहा था. श्रीधर ने कन्नड़ अखबार ‘अग्नि’ शुरू किया और उसे अग्नि श्रीधर के नाम से पुकारा जाने लगा. फिल्मों के धंधे से भी जुड़े श्रीधर ने एक किताब ‘माय डेज़ इन दि अंडरवर्ल्ड’ भी लिखी. यानी बेंगलूरु में संगठित माफिया के खत्म होने से पहले के दौर में आईटी शहर का आखिरी अंडरवर्ल्ड डॉन मुथप्पा राय था.

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मुथप्पा के विरोधी माने जाते रहे अग्नि श्रीधर ने बाद में एक किताब लिखकर अंडरवर्ल्ड संबंधी खुलासे किए.

आईटी सिटी का गॉडफादर
बेंगलूरु से सटे आउटस्कर्ट में महल जैसे आशियाने के साथ ही अकूत संपत्ति अपनी एक बीवी और दो बच्चों के लिए छोड़ गए मुथप्पा को ​’बिलियनेयर’ कहा जाता रहा. अरबपति बनने की दास्तान उदारीकरण के दौर के साथ शुरू हुई थी और देखते देखते बेंगलूरु भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में आईटी सिटी के तौर पर उभरा. दुनिया भर की कंपनियों के लिए यहां ज़मीनों के सौदों में शहर के माफिया की मिलीभगत कही जाती है, जिनमें मुथप्पा प्रमुख था.

जब कोई विदेशी कंपनी बेंगलूरु में बिज़नेस के लिए पहुंचती तो उसे शक रहता​ कि किस पर भरोसा किया जाए. ऐसे में मुथप्पा के लोग जाकर उस कंपनी को भरोसा दिलाते कि ‘जिस डील में मुथप्पा राय का नाम जुड़ता है, उसमें 100 फीसदी गारंटी होती है, कोई धोखाधड़ी नहीं, कोई खतरा नहीं… कहते हैं कि मुथप्पा के महल में रोज़ 150 से ज़्यादा फरियादी मदद मांगने पहुंचते थे.

‘मैंने भारत और खासकर बेंगलूरु के विकास के लिए बहुत कुछ किया है.’ बेंगलूरु में आईटी सेक्टर के विकास और विदेशी कंपनियों के निवेश को लेकर भले ही मुथप्पा यह दावा करता रहा, लेकिन वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट्स रही हों, या दूसरे सर्वे, पुलिस, प्रशासन की कई एजेंसियां तक समय समय पर कहती रही हैं कि रियल एस्टेट के मामले में भारत का पांचवा सबसे बड़ा शहर बेंगलूरु सबसे ज़्यादा भ्रष्ट सिस्टम वाला केंद्र रहा है. और यह इल्ज़ाम मौत के बाद भी मुथप्पा के सिर ही रहने वाला है.

यह ब्लॉग न्यूज़18 पर प्रकाशित लेख के साथ ही, वायर्ड, स्क्रोलअन्य स्रोतों से मिली सामग्री पर आधारित है.

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