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इसके उलट, कानपुर के चौबेपुर थाना क्षेत्र के विकरू गांव में ही कई ऐसे लोग भी हैं, जो विकास को किसी हैवान से कम नहीं मानते. विकास दुबे की गुंडई और दबंगई का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि इसी गांव से 18 परिवारों को मजबूरन पलायन करना पड़ा. गांव के बुजुर्ग 80 वर्षीय शिवराम बताते हैं कि विकास दुबे की मौत के बाद ही इस गांव में लोग चैन की सांस ले पाएंगे. उन्होंने बताया कि 10 साल पहले विकास दुबे की दहशत और दबंगई के चलते 18 परिवारों ने जिले से पलायन कर लिया था. पलायन के 3 महीने बाद उन लोगों के मकान पर भी आरोपी विकास ने कब्जा जमा लिया.
ऐसे बनता था ‘खुदा’ से हैवानशिवराम बताते हैं कि विकास दुबे गरीबों की शादी में कुछ मदद कर किसानों व गरीबों की नजर में खुदा बन जाता था. लेकिन इस तरह वो गरीबों के घर में एंट्री कर लेता था और इसके बाद उसका हैवान वाला चेहरा सामने आता था. वो दबंगई और असलहे के दम पर वह लोग ही जमीन अपने नाम करा लेता था. विकास की दहशत इस कदर थी कि अगर कोई विकास के पैसे नहीं दे पाता ता तो अपने गुर्गों से लेकर पुलिस तक से उनका उत्पीड़न कराता था.
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दरिंदगी की कहानियां
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि एक किसान की जमीन पर विकास कब्जा करने गया. किसान ने उसका विरोध किया तो उसने खेत में ही गरीब किसान की बेरहमी से पिटाई की और बाद में उसकी बेटी को घर से उठा लिया था. आरोप यह भी है कि पीड़ित कई बार पुलिस और चौकी के चक्कर काटता रहा, लेकिन किसी ने उसकी फरियाद नहीं सुनी. आखिरकार अपनी इज्जत और अपनी जान को बचाते हुए वह बुजुर्ग व्यक्ति गांव से पलायन कर गया.
इस तरह जुर्म की दुनिया में एंट्री
विकास दुबे को जानने वालों के मुताबिक कुख्यात गैंगस्टर पहले सामान्य युवक ही था. बहन के पति की मौत के बाद वह उसी के साथ रहने लगा था. फिर कुछ सालों बाद विकास विकरू गांव पहुंचा, जहां पिता रामकुमार और मां के साथ रहने लगा. साल 1994 में दलित समाज के कुछ लोगों ने विकास के पिता राजकुमार से बदसलूकी करने के साथ उनकी पिटाई कर दी. इसके बाद विकास अपने पिता का बदला लेने के लिए घर में रखे असलहे को उठाकर उस वर्ग के लोगों के पास पहुंच गया. यहीं से विकास की एंट्री अपराध की दुनिया में हो गई.
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खुद सुनाता था फैसला
छोटा गांव बिकरू की आबादी 4 से 5 हजार के करीब होगी. इस गांव में रहने वाली 80 वर्ष की श्यामा देवी का कहना है कि 1995 के बाद इस गांव में बने विकास दुबे के आलीशान घर के बाहर मैदान में एक अदालत लगती थी. इसमें जज वह खुद होता था. अदालत की सुनवाई सुबह 6 बजे शुरू होती थी, जहां एक कुर्सी पर कुख्यात विकास बैठता था. बगल में दो बंदूकधारी और लट्ठ लेकर एक दर्जन लोग खड़े रहते थे.
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